• खरसावां गोलीकांड: आजाद भारत का जालियांवाला बाग, जब 50,000 आदिवासियों पर बरसी गोलियां
    Dec 27 2024
    1 जनवरी का दिन, जब दुनिया नए साल का स्वागत करती है, आदिवासी समाज इसे शोक दिवस के रूप में याद करता है। यह सिलसिला 1948 से शुरू हुआ, जब भारत आजादी के केवल पांच महीने पुराने सफर पर था। उसी समय, खरसावां ने स्वतंत्र भारत के इतिहास में एक दर्दनाक घटना देखी, जिसे ‘खरसावां गोलीकांड’ कहा जाता है।
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  • Sapper Shanti Tigga: First female Jawan in the Indian Army
    Nov 11 2024
    Story of Sapper Shanti Tigga, the first woman soldier of the Indian Army There are many areas in which it was believed that it is only men's work and women cannot do it. The Indian Army is also one of them. Breaking this notion, for the first time women soldiers were included in the Indian Army. The first female sapper to join as a female jawan was Shanti Tigga. Which was 35 years old at that time and was the mother of two children. The first woman Jawan Sapper Shanti Tigga was a resident of Jalpaiguri, West Bengal, she was born in 1976. She belonged to the Oraon tribal family. His childhood passed through a difficult phase and he was married at an early age. Due to which both of them got two children, but this happiness did not last long and her husband died in the year 2005. Sapper Shanti Tigga got the job of points man in the Railways on compassionate grounds. After five years of service, he got a chance to join the Indian Army. Shanti Tigga wanted to join the army since childhood, because her relatives were already in the army. After knowing about the Territorial Army in the year 2010, Shanti signed up for 969 Railway Engineer Regiment Territorial Army and joined the Indian Army at the age of 35. Earlier no woman was included in the post below the rank of officer. Sapper Shanti Tigga was posted as a point-man in the Railways at Chalsa station in Jalpaiguri district of West Bengal. According to The Hindu, 35-year-old Sapper Shanti Tigga joined the 969 Railway Engineer Regiment of the Territorial Army (TA) after beating her male counterparts in physical tests. Women are allowed to join the armed forces only as officers in non-combatant units. But Tigga has earned the unique distinction of being the first woman jawan in the 1.3 million strong defense forces. While Shanti Tigga had said, “Some of my relatives were in the armed forces and I was always inspired by them to be a part of the army. I worked hard to clear the physical test. I know that I have made my family proud by becoming the first woman soldier in the army. Best Trainee Award was given by the President Shanti Tigga also impressed the firing instructor at the RTC (Recruitment Training Camp). Shanti achieved the title of Marksman (highest position in the shooter) with his gun shooting skills. According to the Annual Report 2011-12 of the Ministry of Defense of India, Sapper Shanti Tigga joined the Territorial Army on 15 November 2010. From 15 November to 15 December 2010, recruitment training was taken from Shanti Tigga. In which Sapper Shanti Tigga stood first. For which he was honored with the Best Trainee Award by the then President Pratibha Devi Singh Patil. a sad and mysterious ending In the month of May 2013, Shanti Tigga's life took a different turn. Shanti was abducted by some criminals on 9 May 2013, after which she was found in an injured condition near the railway track in Devpani village, with her body tied to a pole and a white blindfold tied over her eyes. He was admitted to Alipur Duar Hospital. Police investigation also started, the security of the hospital was also increased. But still four days later, on 14 May 2013, his body was found hanging in the toilet of the hospital itself. According to First Post, the police officials called it a suicide, saying that the police guards were outside Shanti Tigga's cabin. While sitting outside the cabin, when Sapper Shanti did not come out of the toilet even after a long time, his son raised an alarm. After this Shanti's family strongly demanded an investigation, but due to lack of evidence in the investigation, this mysterious death was allowed to remain a mystery and the case was closed.
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  • Santhal Dharm Sthali: Luguburu Ghanta badi dhorom ghad
    Nov 9 2024
    झारखंड के बोकारो जिले में ललपनिया स्थित लुगुबुरु घांटाबाड़ी धोरोमगाढ़ संताली समुदाय की धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है। मान्यता है कि हजारों साल पहले यहाँ लुगु बाबा की अध्यक्षता में संताली समाज के जन्म से मृत्यु तक के सभी रीति-रिवाजों, जिन्हें संताली संविधान माना जाता है, का निर्माण हुआ था। यह स्थान संताली संस्कृति और परंपराओं का उद्गम स्थल है, जहाँ विभिन्न राज्यों से आए श्रद्धालु आकर आशीर्वाद पाते हैं। लुगुबुरु के मार्ग में कई विशेष चट्टानें हैं, जिन्हें श्रद्धालु खरोंच कर अपने साथ ले जाते हैं। इससे संताली समुदाय की लुगुबुरु के प्रति गहरी आस्था स्पष्ट होती है। संताली संस्कृति के हर अनुष्ठान और विधि में लुगुबुरु घांटाबाड़ी का विशेष स्थान है। 12 साल तक चली बैठक और संविधान रचना जानकारों के अनुसार, लाखों साल पहले दरबार चट्टानी में लुगुबुरु की अध्यक्षता में संताली समाज की 12 साल लंबी बैठक हुई थी। संताली गीतों में "गेलबार सिइंया, गेलबार इंदा" यानी 12 दिन और 12 रात का भी जिक्र है। इसी बैठक के दौरान संताली संस्कृति का आधार तय हुआ। इतने लंबे समय तक हुई इस बैठक के दौरान यहां फसलें उगाई गईं और धान कूटने के लिए चट्टानों का उपयोग किया गया, जिनके निशान आज भी यहां आधा दर्जन ओखल के रूप में मौजूद हैं। सात देवी-देवताओं की पूजा दरबार चट्टानी में पुनाय थान (मंदिर) है, जहाँ सबसे पहले मरांग बुरु और फिर लुगुबुरु, लुगु आयो, घांटाबाड़ी गो बाबा, कुड़ीकीन बुरु, कपसा बाबा और बीरा गोसाईं की पूजा होती है। लुगुबुरु घांटाबाड़ी धोरोमगाढ़ का स्थान लुगुबुरु घांटाबाड़ी झारखंड के बोकारो जिले के गोमिया प्रखंड से 16 किमी दूर ललपनिया में स्थित है। यह राज्य के दूसरे सबसे ऊँचे पर्वत लुगु पहाड़ पर है। यहां रांची से 80 किमी और बोकारो से 86 किमी की दूरी तय कर पहुंचा जा सकता है। लुगुबुरु घांटाबाड़ी की विशेषताएं यहां की यात्रा पूरी तरह पगडंडियों पर निर्भर है क्योंकि सीढ़ियाँ नहीं हैं। लुगु पहाड़ से दिखने वाले दृश्य मनमोहक हैं, ऊंची चोटियों से गिरते झरनों की मधुर ध्वनि और पक्षियों की चहचहाहट यहां की खासियत है। पर्वत की पगडंडियों पर चलते हुए कई प्राकृतिक झरने और पानी के नाले भी मिलते हैं, जिनका जल शुद्ध और पीने योग्य होता है। विशेष ...
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  • Tribal mythology: Oraon Shristi Katha
    Nov 9 2024
    उरांव जनजाति की सृष्टि की उत्पत्ति की कथा एक गहरी आस्था और सांस्कृतिक धरोहर को प्रदर्शित करती है। यह कथा उनकी मान्यताओं, परंपराओं और प्रकृति के साथ उनके गहरे संबंध को दर्शाती है। उरांव लोगों के अनुसार, उनकी उत्पत्ति धरती माता और जल देवता की कृपा से हुई थी। कथा के अनुसार, प्रारंभ में धरती पर केवल जल ही जल था। कोई भूमि, पर्वत, वनस्पति या जीवन नहीं था। उस समय केवल धरती माता और जल देवता का अस्तित्व था, जो पूरे ब्रह्मांड पर शासन करते थे। धरती माता को ब्रह्मांड का सृजन करने का विचार आया। उन्होंने जल देवता से कहा कि वे ऐसी भूमि का निर्माण करना चाहती हैं जहां जीवन संभव हो सके। जल देवता ने उन्हें इस कार्य की अनुमति दी और कहा कि वे इसमें उनका सहयोग करेंगे। जल देवता ने जल को कुछ समय के लिए स्थिर किया, ताकि उसमें से कुछ हिस्से को भूमि के रूप में परिवर्तित किया जा सके। धीरे-धीरे, धरती पर भूमि के छोटे-छोटे टुकड़े प्रकट होने लगे, और इन टुकड़ों पर पेड़-पौधों का निर्माण हुआ। इस प्रकार, धरती माता ने धरती को जीवन के लिए उपयुक्त बनाने के प्रयास किए। एक अन्य मान्यता के अनुसार, उरांव लोग मानते हैं कि उनके पूर्वज भूमिगत गुफाओं में रहते थे। इस कथा में कहा जाता है कि उरांव जनजाति के पहले लोग धरती के नीचे एक विशाल गुफा में रहते थे। वहां पर उनके पास जीवन की सभी आवश्यक चीजें थीं। लेकिन, समय के साथ वे उस स्थान को छोड़कर धरती पर आना चाहते थे। उन्होंने एक मार्ग खोजा और सूर्य की रोशनी की दिशा में यात्रा शुरू की। जब वे धरती पर आए, तो उन्होंने पहली बार सूर्य की रोशनी देखी और उसके तेज से चकित हो गए। उन्होंने सूर्य को एक शक्ति के रूप में देखा और उसे अपने जीवन का आधार माना।
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  • Is Humanity a Virus for Earth or a Disease?
    Nov 9 2024
    इस प्रश्न पर चर्चा करते हुए कि क्या मानव इस ग्रह के लिए "बीमारी" या "वायरस" है, हम विभिन्न दृष्टिकोणों, तर्कों और वैज्ञानिक तथ्यों का विश्लेषण कर सकते हैं। यह विचार कई वैज्ञानिकों, दार्शनिकों और पर्यावरणविदों द्वारा विभिन्न संदर्भों में उठाया गया है। 1. वायरस और बीमारी के रूपक का संदर्भ पहले समझते हैं कि मानव को वायरस या बीमारी के रूप में क्यों देखा जा सकता है। एक वायरस अपने मेजबान का उपयोग करके जीवित रहता है और तेजी से फैलता है, और कुछ मामलों में मेजबान को नुकसान पहुँचाता है। इसी प्रकार, मानव गतिविधियाँ पृथ्वी के संसाधनों का दोहन करती हैं, जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुँचता है। इसी आधार पर कुछ लोग मानते हैं कि मानवता एक वायरस के समान व्यवहार करती है। 2. प्रकृति के साथ असंतुलित संबंध प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक उपयोग, जंगलों की कटाई, प्रदूषण और पारिस्थितिक तंत्र के नष्ट होने से पृथ्वी पर प्राकृतिक संतुलन बिगड़ रहा है। औद्योगिकीकरण और शहरीकरण के चलते वनों का तेजी से नाश हुआ है, जिससे वन्यजीवों के आवास नष्ट हुए हैं। उदाहरण के लिए, अमेज़न वर्षावनों को "पृथ्वी के फेफड़े" कहा जाता है, लेकिन वनों की कटाई के कारण यह क्षेत्र हर साल छोटा होता जा रहा है, जो जलवायु पर गंभीर प्रभाव डालता है। 3. जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग मानवजनित गतिविधियों के परिणामस्वरूप ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में भारी वृद्धि हुई है, जिससे वैश्विक तापमान में वृद्धि हुई है। पिछले कुछ दशकों में औसत वैश्विक तापमान में अभूतपूर्व वृद्धि देखी गई है, जिसका सीधा असर मौसम, समुद्र स्तर, और जैव विविधता पर पड़ा है। जलवायु परिवर्तन का प्रभाव मानव जीवन के अलावा अन्य प्राणियों पर भी गहरा असर डालता है। 4. जैव विविधता का ह्रास मानव गतिविधियों के कारण कई प्रजातियाँ विलुप्त हो रही हैं। प्रकृति में प्रत्येक जीव का एक विशेष स्थान होता है और सभी जीव एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं। जब एक प्रजाति विलुप्त होती है, तो इसका प्रभाव पूरे पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ता है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि वर्तमान समय में विलुप्ति की दर प्राकृतिक दर से हजारों गुना अधिक है, जो मानव हस्तक्षेप का ही परिणाम है। 5. आधुनिक जीवनशैली और संसाधनों का अत्यधिक उपभोग ...
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  • Gond Dharam Sthali: Kachargarh
    Nov 9 2024
    भारत में पर्यटन के लिए प्रसिद्ध कई गुफाओं जैसे महाराष्ट्र की अजंता-एलोरा और विशाखापट्टनम की बोरा गुफाओं की तुलना में, एक और महत्वपूर्ण गुफा के बारे में कम ही लोग जानते हैं—कचारगढ़ गुफा। यह गुफा खास तौर पर गोंड समुदाय के लिए आस्था का केंद्र है और साल में एक बार यहाँ पर आदिवासी गतिविधियाँ अपनी चरम पर होती हैं। ऐसी मान्यता है कि सैकड़ों साल पहले, गोंड समाज के पहले गुरु पाहंदी पारी कोपार लिंगो ने इस गुफा की खोज की थी। गोंड समाज की आस्थाओं के अनुसार, हर क्षेत्र—चाहे वो गाँव हो या शहर, जल-जंगल, पहाड़-पर्वत या कृषि औजार—इन सभी में उनके देवता निवास करते हैं। कहा जाता है कि गोंडवाना साम्राज्य का विस्तार वर्तमान के महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, और छत्तीसगढ़ तक फैला था। गोंडवाना साम्राज्य आज भी इन राज्यों में गोंड समाज की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक छवि के रूप में देखा जा सकता है। कचारगढ़ की गुफाओं में भी इस साम्राज्य के अतीत की झलक मिलती है। ये गुफाएं महाराष्ट्र-छत्तीसगढ़ की सीमा पर सालेकसा तहसील में स्थित हैं और हरे-भरे पहाड़ों और प्राकृतिक सुंदरता के बीच में बसे हैं। #Kachargarhmela #Kachargarh #gondi #Gondwana #gondwana_video मेला: तीन से सात फरवरी तक आयोजन कचारगढ़ गोंड समाज का उत्पत्ति स्थल माना जाता है और इसे एशिया की सबसे विशाल प्राकृतिक गुफाओं में से एक माना जाता है। महाराष्ट्र-छत्तीसगढ़ की सीमा पर सालेकसा तहसील में स्थित यह क्षेत्र नक्सल प्रभावित माना जाता है। यहाँ हर साल पाँच दिनों के लिए गोंड समाज के लोग अपने देवी-देवताओं की सेवा और पूजा के लिए एकत्रित होते हैं। इस बार का मेला तीन से सात फरवरी तक आयोजित किया गया, जिसमें ‘महागोगोना कोयापूनेम महापूजा’ भी होती है, जिसका आयोजन कचारगढ़ ट्रस्ट द्वारा किया जाता है। लाखों आदिवासियों की आस्था का केंद्र इस मेले में देश के लगभग 16 राज्यों से गोंड आदिवासी अपने पूर्वजों और गोंडी धर्म के संस्थापक पाहंदी पारी कोपार लिंगो और कलीकंकाली माता के दर्शन के लिए आते हैं। लगभग तीन लाख से अधिक श्रद्धालु अपनी आस्था और मनोकामनाएँ लेकर यहाँ पहुँचते हैं। ऐसी मान्यता है कि गोंडी धर्म की स्थापना पारीकोपार लिंगो ने लगभग 5000 वर्ष पहले की थी और इस स्थल से ही उन्होंने धर्म का प्रचार शुरू किया था। ...
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  • सरना धर्म: प्रकृति के साथ एक पवित्र बंधन
    Nov 4 2024
    Sarna Religion: A Connection with Nature and Indigenous Beliefs --- The Sarna religion, also known as the "Sarna Dharma," is an indigenous faith followed by many Adivasi (tribal) communities in central and eastern India, particularly in states like Jharkhand, Odisha, Chhattisgarh, Madhya Pradesh, and West Bengal. This belief system is rooted in the deep connection between nature and human life, and it represents the spiritual practices, cultural heritage, and environmental values of these indigenous communities. Sarna followers are often referred to as "nature worshippers" because they honor and worship the elements of nature as sacred. 1. Meaning of Sarna and Its Core Beliefs The word "Sarna" comes from the local languages spoken by these communities and generally means "sacred grove" or "holy place in the forest." A Sarna is a place where people gather to worship trees, rivers, hills, and other natural elements. For followers of the Sarna faith, nature is not just a resource; it is the embodiment of divine forces and ancestors. Their belief system is based on the idea that all aspects of nature—trees, mountains, rivers, animals—are sacred, interconnected, and should be respected. Sarna adherents typically believe in the existence of a supreme spirit or creator who is responsible for all life. However, they don’t typically worship anthropomorphic deities or idols like in mainstream Hinduism. Instead, they recognize "Buru Bonga" or "Bonga," spiritual entities that inhabit nature and govern their lives. Worship practices often revolve around nature itself, which is seen as a manifestation of these spirits.
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  • Birsa Munda: a leader, Prophet or Social Reformer
    Nov 1 2024
    नौ जून, 1900। झारखंड के इतिहास में यह तारीख दर्ज है। इसी दिन धरती आबा बिरसा मुंडा रांची के नवनिर्मित जेल में अंतिम सांस ली थी। तब भी मौसम ऐसा ही जानलेवा था। ब्रिटिश अधिकारियों ने हैजा से मृत्यु का कारण बताया। आनन-फानन में पोस्टमार्टम किया गया। बिरसा के अनुयायियों को भरोसा था-बिरसा मर नहीं सकते। वे आएंगे। जरूर आएंगे। तब धरती आबा की उम्र महज 25 साल थी। फरवरी 1900 में वे अंतिम बार गिरफ्तार हुए थे। इसके बाद उन्हें जेल में डाल दिया गया। बीस मई को उनकी तबीयत खराब हुई। इसके बाद स्थिति में सुधार नहीं हुआ और अंतत: नौ जून को उनका निधन हो गया। कहीं-कहीं तीन जून भी जिक्र है। पर, सबसे बड़ी बात यह थी कि इस युवा से ब्रिटिश सरकार बहुत डरी हुई थी। दिन भर ब्रिटश सरकार कर्मकांड करती रही और अंत में फैसला लिया कि रात होते हुए शव को जला दिया जाएगा।
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