• संपूर्ण चैतन्य लीला | श्रील गौर कृष्ण दास गोस्वामी | 10. चैतन्य-भगवतम (आदि 14-16) | महाप्रभु का दूसरा विवाह और श्रील हरिदास ठाकुर की परीक्षा
    Dec 4 2024

    श्री चैतन्य महाप्रभु की जीवन लीला अनेक महत्वपूर्ण घटनाओं से परिपूर्ण है। उनके जीवन में दूसरा विवाह और श्रील हरिदास ठाकुर की परीक्षा ऐसी ही दो घटनाएँ हैं, जो भक्ति, समर्पण, और भगवान की अपार करुणा का संदेश देती हैं। चैतन्य-भगवतम के 14वें से 16वें अध्याय में इन लीलाओं का सुंदर और विस्तृत वर्णन मिलता है।

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  • संपूर्ण चैतन्य लीला | श्रील गौर कृष्ण दास गोस्वामी | 09. चैतन्य-चरितामृत (आदि 16), चैतन्य-भगवतम (आदि 11-13) | महाप्रभु की शिक्षा और केशव कश्मीरी का उद्धार
    Dec 4 2024

    श्री चैतन्य महाप्रभु का जीवन मात्र एक अद्भुत लीला नहीं था, बल्कि उनके जीवन के हर प्रसंग में भक्ति, ज्ञान, और दिव्यता का समावेश था। इस अध्याय में, महाप्रभु के शिक्षा जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं का वर्णन किया गया है, साथ ही उनके द्वारा केशव कश्मीरी के उद्धार की घटना का भी उल्लेख किया गया है। आदि लीला के सोलहवें अध्याय और चैतन्य भगवतम के ग्यारहवें से तेरहवें अध्याय में महाप्रभु की शिक्षा, उनके ज्ञान की प्रदर्शनी और केशव कश्मीरी का उद्धार विस्तार से वर्णित हैं।

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  • संपूर्ण चैतन्य लीला | श्रील गौर कृष्ण दास गोस्वामी | 08. चैतन्य-चरितामृत (आदि 15), चैतन्य-भगवतम (आदि 8-10) | पौगंड बाल्य लीलाएँ एवं प्रथम विवाह
    Dec 4 2024

    श्री चैतन्य महाप्रभु की पौगंड अवस्था (8 से 10 वर्ष) की लीलाएँ उनकी अद्भुत विशेषताओं और दिव्य रूप को दर्शाती हैं। इस चरण में महाप्रभु ने बाल लीलाओं से बढ़कर कुछ और गहरी भक्ति की लीलाएँ प्रकट कीं, जो भक्तों के लिए प्रेरणादायक हैं। साथ ही, महाप्रभु का पहला विवाह भी इस समय हुआ, जो उनकी लीला के महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में वर्णित है। आदि लीला के पंद्रहवें अध्याय और चैतन्य भगवतम के आठवें से दसवें अध्याय में महाप्रभु की पौगंड लीलाएँ और उनका प्रथम विवाह विस्तार से वर्णित हैं।

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  • संपूर्ण चैतन्य लीला | श्रील गौर कृष्ण दास गोस्वामी | 07. चैतन्य-चरितामृत (आदि 14), चैतन्य-भगवतम (आदि 6-7) | मधुर बाल्य लीलाएँ - भाग 2
    Dec 4 2024

    श्री चैतन्य महाप्रभु के बचपन की लीलाएँ न केवल अद्भुत हैं, बल्कि वे भक्तों के हृदय में गहरे प्रेम और श्रद्धा का संचार करती हैं। आदि लीला के चौदहवें अध्याय और चैतन्य भगवतम के छठे और सातवें अध्याय में महाप्रभु के बाल्यकाल की कुछ और मधुर लीलाओं का वर्णन किया गया है। ये लीलाएँ उनके दिव्य रूप और भगवान के साथ उनके प्रेमपूर्ण संबंध को दर्शाती हैं।

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  • संपूर्ण चैतन्य लीला | श्रील गौर कृष्ण दास गोस्वामी | 06. चैतन्य-चरितामृत (आदि 3, 5) | मधुर बाल्य लीलाएँ - भाग 1
    Dec 4 2024

    श्री चैतन्य महाप्रभु की बाल्यकाल की लीलाएँ अत्यधिक मधुर और दिव्य हैं। इन लीलाओं का वर्णन उनकी अद्वितीयता और भगवान के साथ उनके गहरे संबंध को दर्शाता है। आदि लीला के तीसरे और पांचवे अध्याय में श्री चैतन्य महाप्रभु के बाल्यकाल की कुछ प्रमुख लीलाओं का वर्णन किया गया है, जो भक्तों के लिए अत्यंत आनंददायक हैं। ये लीलाएँ महाप्रभु के दिव्य अवतार के अद्भुत पहलुओं को प्रकट करती हैं।

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  • संपूर्ण चैतन्य लीला | श्रील गौर कृष्ण दास गोस्वामी | 05. चैतन्य-चरितामृत (आदि 13) | महाप्रभु का अवतरण
    Dec 4 2024

    श्री चैतन्य महाप्रभु का अवतरण भगवान श्रीकृष्ण के दिव्य प्रेम और करुणा का अद्भुत प्राकट्य है। आदि लीला के तेरहवें अध्याय में महाप्रभु के जन्म की पावन कथा और उनके अवतरण की दिव्य घटनाओं का वर्णन किया गया है। यह अध्याय उन भक्तों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जो महाप्रभु की लीला और उनके अवतरण के रहस्यों को समझना चाहते हैं।

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  • संपूर्ण चैतन्य लीला | श्रील गौर कृष्ण दास गोस्वामी | 04. चैतन्य-चरितामृत (आदि 5, 7, 9) | नित्यानंद और अद्वैत तत्त्व तथा प्रेम के फल का वितरण
    Dec 4 2024

    श्री चैतन्य महाप्रभु के अवतरण में उनके दो महान सहयोगियों, नित्यानंद प्रभु और अद्वैत आचार्य, की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। आदि लीला के इन अध्यायों में इन दिव्य व्यक्तित्वों के तत्त्व और उनके द्वारा प्रेम-भक्ति के प्रचार का विस्तृत वर्णन किया गया है।

    महाप्रभु ने केवल हरिनाम का प्रचार नहीं किया, बल्कि उन्होंने प्रेम के दिव्य फल को सभी जीवों में वितरित किया। यह प्रेम का फल अद्वितीय है और इसे प्राप्त करने से जीव भगवद्-साक्षात्कार की अवस्था में पहुँचता है।

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  • संपूर्ण चैतन्य लीला | श्रील गौर कृष्ण दास गोस्वामी | 03. चैतन्य-चरितामृत (आदि 4) | महाप्रभु के अवतरण के आंतरिक कारण
    Dec 4 2024

    चेतना शब्द का अर्थ है "जीवनी शक्ति," चरित का अर्थ है "चरित्र," और अमृत का अर्थ है "अमरत्व।" जीवित प्राणियों में गति होती है, जबकि एक मेज या अन्य निर्जीव वस्तु में यह गति नहीं होती क्योंकि उसमें जीवनी शक्ति नहीं होती। गति और गतिविधि को जीवनी शक्ति के लक्षण या संकेत माना जा सकता है। वास्तव में, यह कहा जा सकता है कि बिना जीवनी शक्ति के कोई गतिविधि संभव नहीं है।

    यद्यपि जीवनी शक्ति भौतिक स्थिति में मौजूद है, यह स्थिति अमृत, अर्थात् अमर, नहीं है। इसलिए चैतन्य-चरितामृत शब्द का अर्थ है "अमरत्व में जीवनी शक्ति का चरित्र।"

    लेकिन यह जीवनी शक्ति अमरता में कैसे प्रकट होती है? यह न तो मनुष्यों द्वारा और न ही किसी अन्य प्राणी द्वारा इस भौतिक ब्रह्मांड में प्रदर्शित होती है, क्योंकि इन शरीरों में हम में से कोई भी अमर नहीं है। हमारे पास जीवनी शक्ति है, हम गतिविधियाँ करते हैं, और हमारी प्रकृति और स्वभाव से हम अमर हैं। लेकिन जिस भौतिक स्थिति में हमें रखा गया है, वह हमारी अमरता को प्रकट नहीं होने देती।

    कठ उपनिषद में कहा गया है कि अमरता और जीवनी शक्ति दोनों ही परमात्मा और हमारे लिए स्वाभाविक हैं। हालांकि यह सत्य है कि भगवान और हम दोनों ही अमर हैं, लेकिन एक महत्वपूर्ण अंतर है। जीवित प्राणी के रूप में, हम अनेक गतिविधियाँ करते हैं, लेकिन हमारे पास भौतिक प्रकृति में गिरने की प्रवृत्ति होती है। भगवान के साथ ऐसा नहीं है। वे सर्वशक्तिमान हैं और कभी भी भौतिक प्रकृति के नियंत्रण में नहीं आते। वास्तव में, भौतिक प्रकृति उनकी अचिन्त्य शक्तियों में से केवल एक अभिव्यक्ति है।

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