• प्रणति राम धारी सिंह दिनकर pranati by Ramdhari Sinh Dinkar

  • Jan 15 2023
  • Length: 4 mins
  • Podcast

प्रणति राम धारी सिंह दिनकर pranati by Ramdhari Sinh Dinkar

  • Summary

  • प्रणति-1

    कलम, आज उनकी जय बोल


    जला अस्थियाँ बारी-बारी

    छिटकाई जिनने चिंगारी,

    जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर लिए बिना गर्दन का मोल ।

    कलम, आज उनकी जय बोल ।


    जो अगणित लघु दीप हमारे

    तूफानों में एक किनारे,

    जल-जलाकर बुझ गए, किसी दिन माँगा नहीं स्नेह मुँह खोल ।

    कलम, आज उनकी जय बोल ।


    पीकर जिनकी लाल शिखाएँ

    उगल रहीं लू लपट दिशाएं,

    जिनके सिंहनाद से सहमी धरती रही अभी तक डोल ।

    कलम, आज उनकी जय बोल ।


    अंधा चकाचौंध का मारा

    क्या जाने इतिहास बेचारा ?

    साखी हैं उनकी महिमा के सूर्य, चन्द्र, भूगोल, खगोल ।

    कलम, आज उनकी जय बोल ।


    प्रणति-2

    नमन उन्हें मेरा शत बार ।


    सूख रही है बोटी-बोटी,

    मिलती नहीं घास की रोटी,

    गढ़ते हैं इतिहास देश का सह कर कठिन क्षुधा की मार ।

    नमन उन्हें मेरा शत बार ।


    अर्ध-नग्न जिन की प्रिय माया,

    शिशु-विषण मुख, जर्जर काया,

    रण की ओर चरण दृढ जिनके मन के पीछे करुण पुकार ।

    नमन उन्हें मेरा शत बार ।


    जिनकी चढ़ती हुई जवानी

    खोज रही अपनी क़ुर्बानी

    जलन एक जिनकी अभिलाषा, मरण एक जिनका त्योहार ।

    नमन उन्हें मेरा शत बार ।


    दुखी स्वयं जग का दुःख लेकर,

    स्वयं रिक्त सब को सुख देकर,

    जिनका दिया अमृत जग पीता, कालकूट उनका आहार ।

    नमन उन्हें मेरा शत बार ।


    वीर, तुम्हारा लिए सहारा

    टिका हुआ है भूतल सारा,

    होते तुम न कहीं तो कब को उलट गया होता संसार ।

    नमन तुम्हें मेरा शत बार ।


    चरण-धूलि दो, शीश लगा लूँ,

    जीवन का बल-तेज जगा लूँ,

    मैं निवास जिस मूक-स्वप्न का तुम उस के सक्रिय अवतार ।

    नमन तुम्हें मेरा शत बार ।


    प्रणति-3

    आनेवालो ! तुम्हें प्रणाम ।


    'जय हो', नव होतागण ! आओ,

    संग नई आहुतियाँ लाओ,

    जो कुछ बने फेंकते जाओ, यज्ञ जानता नहीं विराम ।

    आनेवालो ! तुम्हें प्रणाम ।


    टूटी नहीं शिला की कारा,

    लौट गयी टकरा कर धारा,

    सौ धिक्कार तुम्हें यौवन के वेगवंत निर्झर उद्दाम ।

    आनेवालो ! तुम्हें प्रणाम ।


    फिर डंके पर चोट पड़ी है,

    मौत चुनौती लिए खड़ी है,

    लिखने चली आग, अम्बर पर कौन लिखायेगा निज नाम ?

    आनेवालो ! तुम्हें प्रणाम ।


    (१९३८ ई०)


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