ये किताब नहीं एक यात्रा है. ये मार्ग सुगम नहीं है. इस पर सब नहीं चल सकते. मेरे साथ चलने की शर्ते जान लीजिये- मुझे ऐसे श्रोता चाहिए जो आध्यात्मिक मामलों में ईमानदार हों, कट्टर ईमानदार, वर्ना आप मेरी गंभीरता और जूनून नहीं झेल पाएंगे. मुझे चाहिए पर्वत की चोटियों पर वास करने वाले श्रोता, जो अपने तर्क और बुद्धि से परे कोई सत्ता स्वीकार न करते हों- जिनके लिए राजनैतिक हित, राष्ट्रीय स्वार्थ जैसे क्षणभंगुर मुद्दे तुच्छ और त्याज्य हों. मुझे ऐसे बेफिक्र सत्यार्थी ही सुनें जिनके लिए ये सवाल ही पैदा नहीं होता की सच सुन कर क्या फायदा होगा. जो सत्य का शोध करने के लिए कोई भी मूल्य चुकाने को तैयार हों. ये ऐसे साहसी व्यक्तियों के शौक हैं- जो आदि हों ऐसा हर द्वार खटखटाने के, जिस पर प्रवेश निषेध का board टंगा हो, जो किसी भूल- भुलईया में प्रवेश करने में रत्ती भर भी संकोच न करते हों. जो एकांतवासी हों, जिनके कान हमेशा किसी नए संगीत, किसी नई धुन की तलाश में रहते हों. जिनकी निगाहें क्षितिज पर टिकी हो, जिनके अंतःकरण में ऐसे सत्यों के लिए जगह हो जिनको कभी सुना ही न गया, या दबा दिया गया. और सबसे ज़रूरी – ऐसे श्रोता जिनमें योद्धाओं सा सहज़ भाव हो, जो तपती धूप में भी अपना पौरुष और उत्साह न खोएं – जो खुद का सम्मान करना जानते हों, जो खुद से प्रेम करना जानते हों, जो आज़ाद ख्याली, बेशर्त, बेखौफ़ आज़ाद ख्याली के आदि हों. अगर ये सब आप हैं, तो ये मार्ग आपके लिए है, आप हैं वो श्रोता जिनकी मुझे तलाश रही है, बल्कि मैं तो ये मानता हूं की आपका और मेरा मिलना हमारी नियति थी.. और बाकियों का क्या? जो इस मार्ग पर चलने को तैयार नहीं? मेरे लिए वे सिर्फ जनसंख्या हैं- हमें बाकि मानवता से बहुत ऊपर उठने की ज़रूरत है, उन्नयन में और तिरस्कार में. सबसे पहले ये जान लीजिये की आधुनिक मानव जिसको प्रगति कहता है, वह मिथ्या अभिमान और आत्मसम्मोहन से अधिक कुछ नहीं. मानव ने बहुत कुछ बना लिया, बहुत कुछ ईजाद कर लिया, लेकिन उसकी बुद्धि आज भी जस की तस है. मैं मध्य युगीन मानव का आज भी आधुनिक मानव से अधिक सम्मान करता हूं. प्रगति और विकास एक ही चीज नहीं. विकास का आशय चीज़ों, वस्तुओं, कल-कारखानों से है. इनका मानव के उन्नयन, संवृद्धि या आत्म बल बढ़ने से कोई सीधा संबंध नहीं. हम बात कर रहे हैं महामानवों की, overmen, अतिमानवों ...
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