• Episode - 09 Stealing And Atonement

  • Dec 19 2024
  • Length: 9 mins
  • Podcast

Episode - 09 Stealing And Atonement

  • Summary


  • Season : 01 Episode : 09 " Stealing and Atonement " ( चोरी और प्रायश्चित ) . . " The Story of My Experiments with Truth " (The Autobiography of Mahatma Ghandhi) . . . In this chapter, Mahatma Gandhi narrates a deeply personal incident from his childhood that left a lasting impact on his character. Gandhi recounts how, influenced by peer pressure and curiosity, he stole a small amount of gold from his brother's armlet to pay off a debt. The act of theft filled him with immense guilt and shame, as it went against his moral principles. Unable to bear the weight of his wrongdoing, Gandhi decided to confess his theft to his father. He wrote down his confession in a letter, detailing his misdeed and expressing deep remorse, while also pledging to never commit such an act again. Upon reading the letter, his father was moved to tears, but instead of punishing Gandhi, he forgave him. This act of forgiveness deeply moved Gandhi and taught him a powerful lesson about the virtues of truth, repentance, and compassion. This chapter emphasizes Gandhi's early understanding of truth as the cornerstone of a moral life. It highlights his commitment to honesty and his realization that atonement, through confession and a sincere pledge to reform, is a vital step toward personal growth and redemption. This incident played a pivotal role in shaping his lifelong dedication to truth and nonviolence. . . . . इस अध्याय में, महात्मा गांधी अपने बचपन की एक गहरी और व्यक्तिगत घटना का वर्णन करते हैं, जिसने उनके चरित्र पर एक अमिट प्रभाव डाला। गांधी बताते हैं कि कैसे दोस्तों के प्रभाव और जिज्ञासा के कारण उन्होंने अपने भाई के कड़े से थोड़ी-सी सोने की चोरी की ताकि एक कर्ज चुका सकें। यह चोरी उनके नैतिक मूल्यों के विरुद्ध थी, और इस कृत्य ने उन्हें अपराधबोध और शर्म से भर दिया। अपने अपराध का बोझ सहन न कर पाने पर गांधी ने अपने पिता के सामने अपना अपराध स्वीकार करने का निर्णय लिया। उन्होंने एक पत्र लिखकर अपने किए गए कृत्य का पूरा विवरण दिया, अपनी गहरी आत्मग्लानि व्यक्त की और यह संकल्प लिया कि वह कभी दोबारा ऐसा कार्य नहीं करेंगे। उनके पिता ने जब यह पत्र पढ़ा तो उनकी आँखों में आँसू आ गए, लेकिन उन्होंने गांधी को दंडित करने के बजाय क्षमा कर दिया। उनके पिता की इस क्षमा ने गांधी को गहराई से प्रभावित किया और उन्हें सत्य, प्रायश्चित और करुणा के महत्व का एक महत्वपूर्ण पाठ सिखाया। यह अध्याय गांधी की सत्य के प्रति शुरुआती समझ को दर्शाता है, जिसे उन्होंने नैतिक जीवन का आधार माना। यह उनकी ईमानदारी की प्रतिबद्धता और यह एहसास भी उजागर करता है कि प्रायश्चित, जिसमें सच्चा आत्मस्वीकृति और सुधार का संकल्प शामिल है, व्यक्तिगत विकास और आत्म-उद्धार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह घटना उनके जीवन भर के सत्य और अहिंसा के प्रति समर्पण के निर्माण में एक निर्णायक भूमिका निभाती है। . . . . . Buy Now 🛒 With Amazon : https://amzn.to/4eTTzrH

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