• Episode - 08 A Tragedy (Contd.)

  • Dec 17 2024
  • Length: 10 mins
  • Podcast

Episode - 08 A Tragedy (Contd.)

  • Summary

  • Season : 01 Episode : 08 " A Tragedy (Contd.) " ( एक शोकपूर्ण घटना-2 ) . . " The Story of My Experiments with Truth " (The Autobiography of Mahatma Ghandhi) . . . In this chapter, Gandhiji recounts his early experiences and misconceptions related to non-vegetarianism. Reflecting on his adolescence, he describes how he developed an inclination toward eating meat and the moral and social conflicts it triggered within him. Gandhiji writes that a friend convinced him that eating meat enhances physical strength and courage and argued that India's subjugation was due to Indians not consuming meat. Influenced by this reasoning, Gandhiji attempted to eat meat, but it turned out to be a deeply challenging experience for him. He consumed meat secretly, but this act left him with a profound sense of guilt for deceiving his parents. Gandhiji acknowledged that eating meat was against his values and his mother's sentiments. This inner conflict made it impossible for him to continue the practice, and he eventually gave it up. This incident played a significant role in shaping his perspective on truth and morality, making them more resolute and clear. This chapter highlights the moral struggles in Gandhiji's life and the early stages of his quest for truth. It shows how his personal experiences guided him toward choosing the path of truth and non-violence. . . . . इस अध्याय में, गांधीजी ने मांसाहार से जुड़े अपने शुरुआती अनुभवों और भ्रमों का उल्लेख किया है। इस अध्याय में उन्होंने अपने किशोरावस्था के समय को याद करते हुए बताया है कि कैसे मांस खाने के प्रति उनका रुझान हुआ और इसे लेकर उनके भीतर नैतिक और सामाजिक संघर्ष उत्पन्न हुए। गांधीजी ने लिखा है कि एक मित्र ने उन्हें विश्वास दिलाया कि मांस खाना शारीरिक शक्ति और साहस को बढ़ाता है और भारत की गुलामी का कारण यह है कि भारतीय लोग मांस नहीं खाते। इस तर्क से प्रभावित होकर, गांधीजी ने मांस खाने का प्रयास किया, लेकिन यह उनके लिए एक संघर्षपूर्ण अनुभव था। उन्होंने चुपके से मांस खाया, लेकिन इसके कारण उन्हें अपने माता-पिता को धोखा देने का गहरा अपराधबोध महसूस हुआ। गांधीजी ने स्वीकार किया कि मांस खाना उनके संस्कारों और उनकी माता की भावनाओं के खिलाफ था। इस कारण वे लंबे समय तक इसे जारी नहीं रख सके और अंततः इसे छोड़ दिया। इस घटना ने उनके जीवन में सच्चाई और नैतिकता के प्रति उनके दृष्टिकोण को और अधिक स्पष्ट और दृढ़ बनाया। यह अध्याय गांधीजी के जीवन में नैतिक संघर्षों और उनके सत्य की खोज के शुरुआती चरणों को दर्शाता है। यह दिखाता है कि कैसे उन्होंने अपने व्यक्तिगत अनुभवों से सीखते हुए सत्य और अहिंसा की राह चुनी। . . . . . Buy Now 🛒 With Amazon : https://amzn.to/4eTTzrH

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